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सुनते रहते हैं फ़क़त कुछ वो नहीं कह सकते - साइमा असमा कविता - Darsaal

सुनते रहते हैं फ़क़त कुछ वो नहीं कह सकते

सुनते रहते हैं फ़क़त कुछ वो नहीं कह सकते

आइनों से जो कहें उन को नहीं कह सकते

उन के लहजे में कोई और ही बोला होगा

मुझे लगता है कि ऐसा वो नहीं कह सकते

शहर में एक दिवाने से कहलवाते हैं

अहल-ए-पिंदार मिरे ख़ुद जो नहीं कह सकते

यूँ तो मिल जाने को दम-साज़ कई मिल जाएँ

दिल की बातें हैं हर इक से तो नहीं कह सकते

जाने फिर मुँह में ज़बाँ रखने का मसरफ़ क्या है

जो कहा चाहते हैं वो तो नहीं कह सकते

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In Hindi By Famous Poet Saima Asma. is written by Saima Asma. Complete Poem in Hindi by Saima Asma. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.