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मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती - साइमा असमा कविता - Darsaal

मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती

मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती

मोहब्बत में तो पेश-ओ-पस की गुंजाइश नहीं रहती

अँधेरे और भी कुछ तेज़-रफ़्तारी से बढ़ते हैं

दिया कोई जलाने की जहाँ कोशिश नहीं रहती

ये दिल तो किस तरफ़ जाने बहा कर ले गया होता

निगाहों में अगर वो साअत-ए-पुर्सिश नहीं रहती

मह-ओ-अंजुम से लौट आएँ इजारा-दार दुनिया के

जहाँ ये पाँव रखते हैं वहाँ ताबिश नहीं रहती

बहुत से फूल लहजे ख़ार होते हम ने देखे हैं

किसी शीरीं-नवा की दिल को अब ख़्वाहिश नहीं रहती

मुसल्लस का ख़त-ए-सालिस मुझे मिल कर नहीं देता

कभी क़िस्मत से वो रुक जाए तो बारिश नहीं रहती

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In Hindi By Famous Poet Saima Asma. is written by Saima Asma. Complete Poem in Hindi by Saima Asma. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.