ख़ाली हाथों में मोहब्बत बाँटती रह जाऊँगी
ख़ाली हाथों में मोहब्बत बाँटती रह जाऊँगी
अपने ख़ाली हाथ आख़िर देखती रह जाऊँगी
कूच कर जाएँगे सब दश्त-ए-वफ़ा से क़ाफ़िले
ख़्वाब आँखों में लिए मैं सोई ही रह जाऊँगी
भूल जाएगा कोई मुझ को बुझाने का हुनर
सुब्ह भी आई तो शब भर से जली रह जाऊँगी
पाऊँगी जुर्म-ए-मोहब्बत की अनोखी सी सज़ा
वक़्त के होंटों पे मैं इक अन-कही रह जाऊँगी
तुम ने छोड़ा है तो रस्ते और रौशन हो गए
तुम ये समझे थे कि रस्ते में खड़ी रह जाऊँगी
वुसअत-ए-अफ़्लाक में भी निस्बत-ए-ज़ोहरा कहाँ
टूट कर भी लम्हा भर की रौशनी रह जाऊँगी
आज सोचा है कि ख़ुद रस्ते बनाना सीख लूँ
इस तरह तो उम्र सारी सोचती रह जाऊँगी
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