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तुम्हारे लम्स को ख़ुद मैं उतार सकता हूँ - साइम जी कविता - Darsaal

तुम्हारे लम्स को ख़ुद मैं उतार सकता हूँ

तुम्हारे लम्स को ख़ुद मैं उतार सकता हूँ

मैं अपने आप को यूँ भी सँवार सकता हूँ

वो साँस साँस में घुलने लगा है यूँ मेरे

मैं पोर पोर से उस को पुकार सकता हूँ

मिरे ख़याल की ताक़त से तुम नहीं वाक़िफ़

ज़मीन पर मैं फ़लक भी उतार सकता हूँ

मिरे मिज़ाज की शिद्दत से तुम तो वाक़िफ़ हो

तुम्हें मैं अपना बना कर भी हार सकता हूँ

अगर जो इज़्न-ए-मोहब्बत मुझे मिले 'साइम'

मैं रोम रोम तिरा भी निखार सकता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Saim Ji. is written by Saim Ji. Complete Poem in Hindi by Saim Ji. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.