नहीं है याद कि वो याद कब नहीं आया
नहीं है याद कि वो याद कब नहीं आया
उसे भुला के मैं जी लूँ ये ढब नहीं आया
ये सब ग़लत है कि सुनता नहीं किसी की वो
ये सच नहीं कि पुकारा तो रब नहीं आया
वो यूँ तो आता है जाता है मेरी साँसों में
बुलाया वैसे उसे जब वो तब नहीं आया
किसी को रिज़्क़ न पहुँचा हो शाम से पहले
अभी ज़मीन पे ऐसा ग़ज़ब नहीं आया
मैं बे-लिहाज़ हूँ शायद तभी अकेला हूँ
मिरे मिज़ाज में अब तक अदब नहीं आया
भुला चुका हूँ मैं 'साइम' हज़ार बातों को
रहा है याद बस इतना वो जब नहीं आया
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