दयार-ए-दिल से किसी का गुज़र ज़रूरी था
दयार-ए-दिल से किसी का गुज़र ज़रूरी था
उजाड़ रस्ते पे कोई शजर ज़रूरी था
ज़रा सी देर में बुझने को था मगर उस दम
दिए को चलती हवा का समर ज़रूरी था
अगर न होते ये दुनिया इसी तरह चलती
हमारा होना जहाँ में मगर ज़रूरी था
नज़र में शे'र सजाते ग़ज़ल समाअ'त में
सुख़न के शहर में ऐसा नगर ज़रूरी था
हमारे दिल में रही है बस एक ही ख़्वाहिश
दयार-ए-यार में अपना भी घर ज़रूरी था
छलक रही हैं मिरे रोम रोम से ख़ुशियाँ
तुम्हारी बज़्म का कुछ तो असर ज़रूरी था
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