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ज़ख़्मों को मिरे रंग हिना दे गई सबा - सैलानी सेवते कविता - Darsaal

ज़ख़्मों को मिरे रंग हिना दे गई सबा

ज़ख़्मों को मिरे रंग हिना दे गई सबा

चाहा था क्या बहार में क्या दे गई सबा

परवाज़ कर रही है ख़लाओं में रूह भी

अपने मरीज़-ए-ग़म को शिफ़ा दे गई सबा

दश्त-ए-जुनूँ को गर्द उड़ी और जम गई

उर्यां था मेरा जिस्म क़बा दे गई सबा

दिल को उड़ा के ले गई मानिंद-ए-बू-ए-गुल

काँटों पे लोटने की सज़ा दे गई सबा

ये बर्क़ ये हवादिस-ए-दौराँ फ़ुज़ूल हैं

मेरी फ़ना को रंग-ए-बक़ा दे गई सबा

टूटा न फिर भी उस के ख़यालों का सिलसिला

दिल के क़रीब आ के सदा दे गई सबा

'सैलानी' उस बहार में जाते हुए हमें

मुरझाए गुल ग़मों की रिदा दे गई सबा

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In Hindi By Famous Poet Sailani Sevte. is written by Sailani Sevte. Complete Poem in Hindi by Sailani Sevte. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.