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अपने अंजाम से बे-ख़बर ज़िंदगी - सैलानी सेवते कविता - Darsaal

अपने अंजाम से बे-ख़बर ज़िंदगी

अपने अंजाम से बे-ख़बर ज़िंदगी

रात दिन कर रही है सफ़र ज़िंदगी

इन दहकती चिताओं की आग़ोश में

किस तरह हो सकेगी बसर ज़िंदगी

आ के जाते हुए मंज़रों की तरह

घटती जाती है शाम-ओ-सहर ज़िंदगी

मौत तेरा बहुत हम पे एहसान है

तुझ से पहली न थी मो'तबर ज़िंदगी

बुग़्ज़-ओ-नफ़रत की बढ़ती हुई आग में

जल रहे हैं उमीदों के घर ज़िंदगी

छोड़ कर इस क़फ़स को किधर जाएँगे

हो गई अब तो बे-बाल-ओ-पर ज़िंदगी

हम भी 'सैलानी' भटका किए उम्र भर

ले गई जब इधर से उधर ज़िंदगी

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In Hindi By Famous Poet Sailani Sevte. is written by Sailani Sevte. Complete Poem in Hindi by Sailani Sevte. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.