ज़िंदगी किस तरह कटेगी 'सैफ़'
रात कटती नज़र नहीं आती
Javed Akhtar
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Rahat Indori
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हसीन रातों जमील तारों की याद सी रह गई है बाक़ी
शगुफ़्त-ए-गुंचा-ए-महताब कौन देखेगा
अपनी वुसअत में खो चुका हूँ मैं
रुख़ पे यूँ झूम कर वो लट जाए
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
जब तसव्वुर में न पाएँगे तुम्हें
बे-ख़ुदी ले उड़ी हवास कहीं
दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
क़ज़ा का वक़्त रुख़्सत की घड़ी है
राह आसान हो गई होगी
कितने अंजान हैं क्या सादगी से पूछते हैं