ये आलाम-ए-हस्ती ये दौर-ए-ज़माना
तो क्या अब तुम्हें भूल जाना पड़ेगा
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दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
हुस्न जल्वा दिखा गया अपना
फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
पास आए तो और हो गए दूर
गरचे सौ बार ग़म-ए-हिज्र से जाँ गुज़री है
हसीन रातों जमील तारों की याद सी रह गई है बाक़ी
उम्र गुज़री मिरी शीरीनी-ए-गुफ़्तार के साथ
चाँदनी रात बड़ी देर के बा'द आई है
कुछ तो रंगीनी-ए-अफ़कार खुले
क़रीब-ए-नज़'अ भी क्यूँ चैन ले सके कोई