तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को
किसी से रब्त बढ़ाने का हौसला न हुआ
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आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के ब'अद
क़ज़ा का वक़्त रुख़्सत की घड़ी है
ज़िंदगी किस तरह कटेगी 'सैफ़'
शोर दिन को नहीं सोने देता
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
वस्ल की बात और ही कुछ थी
कभी जिगर पे कभी दिल पे चोट पड़ती है
'सैफ़' पी कर भी तिश्नगी न गई
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
पास आए तो और हो गए दूर
तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
छुप छुप के अब न देख वफ़ा के मक़ाम से