क़रीब-ए-नज़'अ भी क्यूँ चैन ले सके कोई
नक़ाब रुख़ से उठा लो तुम्हें किसी से क्या
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हुस्न जल्वा दिखा गया अपना
ऐसे लम्हे भी गुज़ारे हैं तिरी फ़ुर्क़त में
अपनी वुसअत में खो चुका हूँ मैं
एक से एक है ग़ारत-गर-ए-ईमान यहाँ
क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ
एक उदासी दिल पर छाई रहती है
वो भी हमें सरगिराँ मिले हैं
दिल-ए-नादाँ तिरी हालत क्या है
रात गुज़रे न दर्द-ए-दिल ठहरे
वस्ल की बात और ही कुछ थी
जब वज्ह-ए-सुकून-ए-जाँ ठहर जाए