हुस्न जल्वा दिखा गया अपना
इश्क़ बैठा रहा उदास कहीं
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तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
रुख़ पे यूँ झूम कर वो लट जाए
उस मुसाफ़िर की नक़ाहत का ठिकाना क्या है
मेरा होना भी कोई होना है
जी दर्द से है निढाल अपना
दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
दिल ने पाया क़रार पहलू में
वो भी हमें सरगिराँ मिले हैं
दुश्मन गए तो कशमकश-ए-दोस्ती गई
'सैफ़' अंदाज़-ए-बयाँ रंग बदल देता है
एक उदासी दिल पर छाई रहती है
चाँदनी रात बड़ी देर के बा'द आई है