हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
हमारे पास भी सामान एक रात का है
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क्या मंज़िल-ए-ग़म सिमट गई है
रुख़ पे यूँ झूम कर वो लट जाए
कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है
अब वो सौदा नहीं दीवानों में
लुत्फ़ फ़रमा सको तो आ जाओ
तुम ने दीवाना बनाया मुझ को
दिल-ए-नादाँ तिरी हालत क्या है
दर-पर्दा जफ़ाओं को अगर जान गए हम
तेरी आँखों में रंग-ए-मस्ती है
दिल ने पाया क़रार पहलू में
तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
फूल इस ख़ाक-दाँ के हम भी हैं