ग़म-गुसारो बहुत उदास हूँ मैं
आज बहला सको तो आ जाओ
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चैन अब मुझ को तह-ए-दाम तो लेने देते
दिल ने पाया क़रार पहलू में
गरचे सौ बार ग़म-ए-हिज्र से जाँ गुज़री है
तुम ने दीवाना बनाया मुझ को
क़रीब-ए-नज़'अ भी क्यूँ चैन ले सके कोई
ज़ोहद किस किस ने लुटाए हैं तुम्हें क्या मालूम
फैल रहे हैं वक़्त के साए
जी नहीं आप से क्या मुझ को शिकायत होगी
शोर दिन को नहीं सोने देता
जैसे दरिया में गुहर बोलता है
उस मुसाफ़िर की नक़ाहत का ठिकाना क्या है