दुश्मन गए तो कशमकश-ए-दोस्ती गई
दुश्मन गए कि दोस्त हमारे चले गए
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मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
पास आए तो और हो गए दूर
क्यूँ उजड़ जाती है दिल की महफ़िल
तुम को बेगाने भी अपनाते हैं मैं जानता हूँ
खोया पाने वालों ने
जैसे दरिया में गुहर बोलता है
मग़रूर थे अपनी ज़ात पर हम
जिस दिन से भुला दिया है तू ने
आज की रात वो आए हैं बड़ी देर के ब'अद
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
शोर दिन को नहीं सोने देता
फैल रहे हैं वक़्त के साए