दिल-ए-नादाँ तिरी हालत क्या है
तू न अपनों में न बेगानों में
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कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है
बे-ख़ुदी ले उड़ी हवास कहीं
एक उदासी दिल पर छाई रहती है
जब तसव्वुर में न पाएँगे तुम्हें
क़रीब मौत खड़ी है ज़रा ठहर जाओ
वफ़ा अंजाम होती जा रही है
हसीन रातों जमील तारों की याद सी रह गई है बाक़ी
आए थे उन के साथ नज़ारे चले गए
दिल-ए-वीराँ को देखते क्या हो
जब वज्ह-ए-सुकून-ए-जाँ ठहर जाए
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
वो भी हमें सरगिराँ मिले हैं