चलो मय-कदे में बसेरा ही कर लो
न आना पड़ेगा न जाना पड़ेगा
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क़ज़ा का वक़्त रुख़्सत की घड़ी है
तुम ने दीवाना बनाया मुझ को
कैसे जीते हैं ये किस तरह जिए जाते हैं
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
हमें ख़बर है वो मेहमान एक रात का है
तुम्हारे ब'अद ख़ुदा जाने क्या हुआ दिल को
पास आए तो और हो गए दूर
कभी जिगर पे कभी दिल पे चोट पड़ती है
ये आलाम-ए-हस्ती ये दौर-ए-ज़माना
छुप छुप के अब न देख वफ़ा के मक़ाम से
वस्ल की बात और ही कुछ थी
मेरा होना भी कोई होना है