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कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है - सैफ़ुद्दीन सैफ़ कविता - Darsaal

कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है

कितना बेकार तमन्ना का सफ़र होता है

कल की उम्मीद पे हर आज बसर होता है

यूँ मैं सहमा हुआ घबराया हुआ रहता हूँ

जैसे हर वक़्त किसी बात का डर होता है

दिन गुज़रता है तो लगता है बड़ा काम हुआ

रात कटती है तो इक मा'रका सर होता है

लोग कहते हैं मुक़द्दर का नविश्ता जिस को

हम नहीं मानते हर चंद मगर होता है

'सैफ़' इस दौर में इतना भी ग़नीमत समझो

क़ैद में रौज़न-ए-दीवार भी दर होता है

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In Hindi By Famous Poet Saifuddin Saif. is written by Saifuddin Saif. Complete Poem in Hindi by Saifuddin Saif. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.