काग़ज़ पे उगल रहा है नफ़रत
कम-ज़र्फ़ अदीब हो गया है
Habib Jalib
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह
दिल के शजर को ख़ून से गुलनार देख कर
तन्हाई के शो'लों पे मचलने के लिए था
इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने
अश्कों में क़लम डुबो रहा है
अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था
बेचैन हूँ ख़ूँनाबा-फ़िशानी में घिरा हूँ
एहसास में शदीद तलातुम के बावजूद
लहजे का रंग लफ़्ज़ की ख़ुश्बू भी देख ले
क्यूँ जल-बुझे कहीं तो गिरफ़्तार बोलते
चिंगारियाँ न डाल मिरे दिल के घाव में