ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह
ओढ़ी रिदा-ए-दर्द भी हालात की तरह
तारीकियों में डूब गए रात की तरह
शेवा नहीं कि शोला-ए-ग़म से करें गुरेज़
हर ज़ख़्म है क़ुबूल नई बात की तरह
नींद आ रही है कर्ब की आग़ोश में मुझे
सीने पे दस्त-ए-ग़म है तिरे हात की तरह
मैं अपने आप से कभी बाहर न आ सका
उलझा रहा हूँ ख़ुद मैं ख़यालात की तरह
हैरान हूँ कि ख़ुद को भी पहचानता नहीं
जज़्बे बदल रहे हैं रूसूमात की तरह
वो दौड़ है कि अपनी हवा भी न छू सकूँ
उड़ती है मेरी फ़िक्र भी लम्हात की तरह
क्या गुल खिलाए मेरी उदासी की लहर ने
ज़ेहनों के रेग-ज़ार में बरसात की तरह
क्या बस्तियों का ज़िक्र कि एहसास की तपिश
जंगल जला गई मिरे जज़्बात की तरह
क्या ख़ूब आश्ना हैं कि पहचानते नहीं
जब भी मिले तो पहली मुलाक़ात की तरह
दुनिया का दर्द अपने दुखों में समेट कर
महसूस कर रहा हूँ ग़म-ए-ज़ात की तरह
अहबाब किस ख़ुलूस से 'ज़ुल्फ़ी' मिरी ग़ज़ल
रखते हैं दिल के ताक़ में सौग़ात की तरह
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