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इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने - सैफ़ ज़ुल्फ़ी कविता - Darsaal

इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने

इतने दुखी हैं हम को मसर्रत भी ग़म बने

अमृत हमारे होंट से मस हो तो सम बने

रोए ब-रंग-ए-अब्र फ़रिश्ते भी गूँध कर

किस दश्त-ए-अश्क-ओ-आह की मिट्टी से हम बने

कुछ और भी तो शीश-महल रास्ते में थे

क्यूँ हम फ़क़त निशाना-ए-संग-ए-सितम बने

आँखों के सामने है शिकस्ता दर-ए-सुकूँ

हम तक रहे हैं देर से तस्वीर-ए-ग़म बने

बरसे हैं दश्त-ए-ज़ीस्त में हम पर वो संग-ओ-ख़िश्त

यकजा सिमट के आएँ तो कोह-ए-अलम बने

लहजे के बाँकपन में छुपाते हैं दिल का सोज़

हम ऐसे रख-रखाव के फ़नकार कम बने

जो दास्ताँ मिटाई ज़ियादा लिखी गई

जितने हमारे हाथ तराशे क़लम बने

'ज़ुल्फ़ी' वो सरज़मीं कि जहाँ दफ़्न है 'शकेब'

वो क्यूँ न अहल-ए-फ़न के लिए मोहतरम बने

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In Hindi By Famous Poet Saif Zulfi. is written by Saif Zulfi. Complete Poem in Hindi by Saif Zulfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.