अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था

अब क्या गिला करें कि मुक़द्दर में कुछ न था

हम ग़ोता-ज़न हुए तो समुंदर में कुछ न था

दीवाना कर गई तिरी तस्वीर की कशिश

चूमा जो पास जा के तो पैकर में कुछ न था

अपने लहू की आग हमें चाटती रही

अपने बदन का ज़हर था साग़र में कुछ न था

देखा तो सब ही लाल-ओ-जवाहर लगे मुझे

परखा जो दोस्तों को तो अक्सर में कुछ न था

सब रंग सैल-ए-तीरगी-ए-शब से ढल गए

सब रौशनी के अक्स थे मंज़र में कुछ न था

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In Hindi By Famous Poet Saif Zulfi. is written by Saif Zulfi. Complete Poem in Hindi by Saif Zulfi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.