जागा है कच्ची नींद से मत छेड़िए उसे
जागा है कच्ची नींद से मत छेड़िए उसे
क्या जाने क्या जुनून में मुँह से निकल पड़े
सावन की रुत भी अब के बरस बे-ख़बर गई
बादल उठे तो जाने कहाँ पर बरस गए
क़द-आवरी पे अपनी हमें नाज़ था बहुत
सूरज उगा तो क़द से भी साए दराज़ थे
मुजरिम बने कि सिक्का था अहद-ए-क़दीम का
बाज़ार ले गए तो गिरफ़्तार हो गए
बचपन की ख़्वाहिशों का गला घोंटना पड़ा
जब हम ख़ला से पार हुए तो खंडर मिले
ख़ल्वत का उस की भेद किसी पे खुलेगा क्या
दीवारें बे-ज़बान हैं गूँगे हैं आइने
ऐ 'सैफ़' हम भी यूसुफ़-ए-सानी हैं आज-कल
अंधे कुएँ से निकले तो बाज़ार में बिके
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