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सुब्ह-ए-इशरत ज़िंदगी की शाम हो कर रह गई - सैफ़ बिजनोरी कविता - Darsaal

सुब्ह-ए-इशरत ज़िंदगी की शाम हो कर रह गई

सुब्ह-ए-इशरत ज़िंदगी की शाम हो कर रह गई

हसरत-ए-दिल मौत का पैग़ाम हो कर रह गई

तुम ने दुनिया को लुटा दें ने'मतें अच्छा किया

मेरी दुनिया बस तुम्हारा नाम हो कर रह गई

जिस सहर की हम ने माँगी थी असीरी में दुआ

वो सहर आई तो लेकिन शाम हो कर रह गई

ऐ मोहब्बत के ख़ुदा ऐ इश्क़ के परवरदिगार

हर तमन्ना अब ख़याल-ए-ख़ाम हो कर रह गई

ख़ौफ़-ए-रुस्वाई ने मुझ को आह भी भरने न दी

लब तक आई भी तो उन का नाम हो कर रह गई

देख कर उन को मिरी आँखों में भर आए थे अश्क

बात ही क्या थी मगर वो आम हो कर रह गई

अहल-ए-महफ़िल देखते ही 'सैफ़' बे-ख़ुद हो गए

हर अदा साक़ी की शरह-ए-जाम हो कर रह गई

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In Hindi By Famous Poet Saif Bijnori. is written by Saif Bijnori. Complete Poem in Hindi by Saif Bijnori. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.