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कोई मक़ाम नहीं हद्द-ए-ए'तिबार के बा'द - सैफ़ बिजनोरी कविता - Darsaal

कोई मक़ाम नहीं हद्द-ए-ए'तिबार के बा'द

कोई मक़ाम नहीं हद्द-ए-ए'तिबार के बा'द

कहाँ मैं सज्दा करूँ आस्तान-ए-यार के बा'द

उठूँ तो जाऊँ कहाँ जा-ए-पुर-बहार के बा'द

कहीं पनाह नहीं उन की रहगुज़ार के बा'द

कहाँ का अज़्म है ऐ दिल हुसूल-ए-कार के बा'द

अब और भी कोई का'बा है कू-ए-यार के बा'द

तबाह हम हुए बीम-ओ-रजा में आख़िर-ए-कार

कुछ इंतिज़ार से पहले कुछ इंतिज़ार के बा'द

गिला नहीं है जफ़ा का मगर सवाल ये है

सताएँगे किसे फिर आप जाँ-निसार के बा'द

किसे ख़बर है कि गुज़रेगी इस असीर पे क्या

क़फ़स मिले जिसे रंगीनी-ए-बहार के बा'द

सहर के होते ही रुख़्सत हुआ मरीज़-ए-फ़िराक़

जहाँ में काम ही क्या था अब इंतिज़ार के बा'द

किसी से मशवरा-ए-तर्क-ए-इश्क़ 'सैफ़' न कर

न सुन किसी की दिल आज़मूदा-कार के बा'द

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In Hindi By Famous Poet Saif Bijnori. is written by Saif Bijnori. Complete Poem in Hindi by Saif Bijnori. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.