किस लुत्फ़ से महफ़िल में बिठाए गए हम लोग
किस लुत्फ़ से महफ़िल में बिठाए गए हम लोग
क्या राज़ था ख़ातिर में जो लाए गए हम लोग
शमएँ तिरी यादों की जलाए गए हम लोग
अश्कों के ख़ज़ाने थे लुटाए गए हम लोग
सर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा पे झुकाए गए हम लोग
यूँ रस्म-ए-वफ़ा उन से बनाए गए हम लोग
ग़ैरों ने मुरत्तब किए अफ़्साने सितम के
अफ़्सानों के उन्वान बनाए गए हम लोग
हैं मोरिद-ए-इल्ज़ाम हमीं तेरी नज़र में
दुनिया की ख़ताओं पे सताए गए हम लोग
गो हम न रहे रह गया अफ़्साना हमारा
माज़ी की तरह हो गए आए गए हम लोग
हम मिट गए दुनिया से तो समझी हमें दुनिया
खोए गए हम लोग तो पाए गए हम लोग
अच्छे रहे वो लोग जो बंदे थे हवस के
आदाब-ए-मोहब्बत में मिटाए गए हम लोग
कुछ ऐसे गिरे 'सैफ़' निगाहों से हम उन की
जिस बज़्म में भी पहुँचे उठाए गए हम लोग
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