दिल इज़्तिराब में है जिगर इल्तिहाब में
दिल इज़्तिराब में है जिगर इल्तिहाब में
देखा है जब से मैं ने किसी को नक़ाब में
खुल जाने में वो कैफ़ और वो दिलकशी कहाँ
है जब किसी की शर्म-ओ-हया-ओ-हिजाब में
मैं खींचता हूँ हाथ सुकूँ की तलाश से
जब देखता हूँ एक जहाँ को अज़ाब में
ऐ शैख़ काश तू भी कभी पी के देखता
है तल्ख़ी-ए-हयात का दरमाँ शराब में
ये शोख़ियाँ ये ग़फ़लतें ये होश्यारियाँ
अंदाज़ सौ तरह के हैं तेरे शबाब में
क्या आज भी रहेंगी सितारों से चश्म-गीं
क्या आज भी न आएँगे वो माहताब में
इक इक अदा-ए-हुस्न हमारी नज़र में है
उल्फ़त की चाशनी है निगाह-ए-इताब में
'साइब' न पूछ हाल-ए-दिल-ए-ग़म-ज़दा न पूछ
हर साँस मेरी इन दिनों है इज़्तिराब में
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