सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो
सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो
सिर्फ़ हम से नहीं ख़ुद से भी जुदा लगती हो
आँख उठती है न झुकती है किसी की ख़ातिर
साँस चढ़ती है न रुकती है किसी की ख़ातिर
जो किसी दर पे न ठहरे वो हवा लगती हो
ज़ुल्फ़ लहराए तो आँचल में छुपा लेती हो
होंट थर्राए तो दाँतों में दबा लेती हो
जो कभी खुल के न बरसे वो घटा लगती हो
जागी जागी नज़र आती हो न सोई सोई
तुम जो हो अपने ख़यालात में खोई हुई
किसी मायूस मुसव्विर की दुआ लगती हो
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