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नहीं किया तो कर के देख - साहिर लुधियानवी कविता - Darsaal

नहीं किया तो कर के देख

नहीं किया तो कर के देख

तू भी किसी पे मर के देख

हुस्न के बिखरे फूलों से

दिल की झोली भर के देख

कौन तुझे क्या कहता है

क्यूँ उस का ग़म सहता है

कुत्ते भौंकते रहते हैं

क़ाफ़िला चलता रहता है

कभी अपने मन की कर के देख

रहतीं रस्में तोड़ भी दे

दिल को अकेला छोड़ भी दे

दुनिया दिल की दुश्मन है

दुनिया का मुँह मोड़ भी दे

कुछ तो अनोखा कर के देख

एक रस्ता है दौलत का

दूसरा ऐश-ओ-इशरत का

तीसरा झूटी इज़्ज़त का

चौथा सच्ची उल्फ़त का

इस रस्ते से गुज़र के देख

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