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मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं - साहिर लुधियानवी कविता - Darsaal

मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं

मुझे गले से लगा लो बहुत उदास हूँ मैं

ग़म-ए-जहाँ से छुड़ा लो बहुत उदास हूँ मैं

ये इंतिज़ार का दुख अब सहा नहीं जाता

तड़प रही है मोहब्बत रहा नहीं जाता

तुम अपने पास बला लो बहुत उदास हूँ मैं

भटक चुकी हूँ बहुत ज़िंदगी की राहों में

मुझे अब आ के छुपा लो तुम अपनी बाँहों में

मिरा सवाल न टालो बहुत उदास हूँ मैं

हर इक साँस में मिलने की प्यास पलती है

सुलग रहा है बदन और रूह जलती है

बचा सको तो बचा लो बहुत उदास हूँ मैं

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