मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो
मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में बीते दिन याद दिलाते हो
मस्ताना हवा के झोंकों से हर बार वो पर्दे का हिलना
पर्दे को पकड़ने की धुन में दो अजनबी हाथों का मिलना
आँखों में धुआँ सा छा जाना साँसों में सितारे से खुलना
रस्ते में तुम्हारा मुड़ मुड़ कर तकना वो मुझे जाते जाते
और मेरा ठिठक कर रुक जाना चिलमन के क़रीब आते आते
नज़रों का तरस कर रह जाना इक और झलक पाते पाते
बालों को सुखाने की ख़ातिर कोठे पे वो मेरा आ जाना
और तुम को मुक़ाबिल पाते ही कुछ शर्माना कुछ बल खाना
हम-सायों के डर से कतराना घर वालों के डर से घबराना
रो रो के तुम्हें ख़त लिखती हूँ और ख़ुद पढ़ कर रो लेती हूँ
हालात के तपते तूफ़ाँ में जज़्बात की कश्ती खेती हूँ
कैसे हो कहाँ हो कुछ तो कहो मैं तुम को सदाएँ देती हूँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो
और झाँक के मेरी आँखों में बीते दिन याद दिलाते हो
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