जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं
जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं
रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी
साँसों की आग जिस्म की ख़ुशबू न ढल सकी
तुझ में जो लोच है मिरी तहरीर में नहीं
बे-जान हुस्न में कहाँ गुफ़्तार की अदा
इंकार की अदा है न इक़रार की अदा
कोई लचक भी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में नहीं
दुनिया में कोई चीज़ नहीं है तिरी तरह
फिर एक बार सामने आ जा किसी तरह
क्या और इक झलक मिरी तक़दीर में नहीं
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