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आज की रात मुरादों की बरात आई है - साहिर लुधियानवी कविता - Darsaal

आज की रात मुरादों की बरात आई है

आज की रात मुरादों की बरात आई है

आज की रात नहीं शिकवे शिकायत के लिए

आज हर लम्हा हर इक पल है मोहब्बत के लिए

रेशमी सेज है महकी हुई तन्हाई है

आज की रात मुरादों की बरात आई है

हर गुनह आज मुक़द्दस है फ़रिश्तों की तरह

काँपते हाथों को मिल जाने दो रिश्तों की तरह

आज मिलने में न उलझन है न रुस्वाई है

आज की रात मुरादों की बरात आई है

अपनी ज़ुल्फ़ें मिरे शाने पे बिखर जाने दो

इस हसीं रात को कुछ और निखर जाने दो

सुब्ह ने आज न आने की क़सम खाई है

आज की रात मुरादों की बरात आई है

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