आज की रात मुरादों की बरात आई है
आज की रात मुरादों की बरात आई है
आज की रात नहीं शिकवे शिकायत के लिए
आज हर लम्हा हर इक पल है मोहब्बत के लिए
रेशमी सेज है महकी हुई तन्हाई है
आज की रात मुरादों की बरात आई है
हर गुनह आज मुक़द्दस है फ़रिश्तों की तरह
काँपते हाथों को मिल जाने दो रिश्तों की तरह
आज मिलने में न उलझन है न रुस्वाई है
आज की रात मुरादों की बरात आई है
अपनी ज़ुल्फ़ें मिरे शाने पे बिखर जाने दो
इस हसीं रात को कुछ और निखर जाने दो
सुब्ह ने आज न आने की क़सम खाई है
आज की रात मुरादों की बरात आई है
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