वज्ह-ए-बे-रंगी-ए-गुलज़ार कहूँ तो क्या हो
कौन है कितना गुनहगार कहूँ तो क्या हो
तुम ने जो बात सर-ए-बज़्म न सुनना चाही
मैं वही बात सर-ए-दार कहूँ तो क्या हो
Jaun Eliya
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जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं
इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
ज़मीं ने ख़ून उगला आसमाँ ने आग बरसाई
ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
ताज-महल
नज़र से दिल में समाने वाले मिरी मोहब्बत तिरे लिए है
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
मिरे अहद के हसीनो
इस तरफ़ से गुज़रे थे क़ाफ़िले बहारों के
कुछ बातें