जहाँ जहाँ तिरी नज़रों की ओस टपकी है
वहाँ वहाँ से अभी तक ग़ुबार उठता है
जहाँ जहाँ तिरे जल्वों के फूल बिखरे थे
वहाँ वहाँ दिल-ए-वहशी पुकार उठता है
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हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
आज
'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो
दिल के मुआमले में नतीजे की फ़िक्र क्या
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
जो बात तुझ में है तिरी तस्वीर में नहीं
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
शर्मा के यूँ न देख अदा के मक़ाम से
मुझे सोचने दे
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
हम-अस्र