वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
इल्ज़ाम किसी और के सर जाए तो अच्छा
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मादाम
शहकार
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
ये ज़मीं किस क़दर सजाई गई
न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
रद्द-ए-अमल
फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला
मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन