तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को
बर्बाद कर दिया तिरे दो दिन के प्यार ने
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मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाए
नहीं किया तो कर के देख
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
मायूसी-ए-मआल-ए-मोहब्बत न पूछिए
मादाम
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने
मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ
मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
आवाज़-ए-आदम
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं