तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
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जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
मुफ़ाहमत
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
किसी को उदास देख कर
फिर न कीजे मिरी गुस्ताख़-निगाही का गिला
मता-ए-ग़ैर
कभी कभी
इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ
जज़्बात भी हिन्दू होते हैं चाहत भी मुसलमाँ होती है
लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने