फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ में
मिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
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ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है
एहसास-ए-कामराँ
मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ
नूर-जहाँ के मज़ार पर
ये दुनिया दो-रंगी है
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
एक मुलाक़ात
फ़रार
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
विर्सा