मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
ज़माने अब तो ख़ुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैं ने
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औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं
आज
ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम
मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
मिरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूँ
अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार
सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो
शहज़ादे