मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
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शहज़ादे
विर्सा
अब वो करम करें कि सितम मैं नशे में हूँ
हर तरह के जज़्बात का एलान हैं आँखें
यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना
मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
एक मंज़र
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है
मैं नहीं तो क्या
बुझा दिए हैं ख़ुद अपने हाथों मोहब्बतों के दिए जला के