मैं जिसे प्यार का अंदाज़ समझ बैठा हूँ
वो तबस्सुम वो तकल्लुम तिरी आदत ही न हो
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तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है
भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
तुलू-ए-इश्तिराकियत
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हम
सब में शामिल हो मगर सब से जुदा लगती हो