लो आज हम ने तोड़ दिया रिश्ता-ए-उमीद
लो अब कभी गिला न करेंगे किसी से हम
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अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
अभी ज़िंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ ख़ल्वत में
इसी दो-राहे पर
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
ये ज़मीं किस क़दर सजाई गई
फिर वही कुंज-ए-क़फ़स
गुलशन गुलशन फूल
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
उमीद
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
शहज़ादे