कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
वही बेगाने चेहरे हैं जहाँ जाएँ जिधर जाएँ
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मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ
मिरे अहद के हसीनो
तुझ को ख़बर नहीं मगर इक सादा-लौह को
ख़ूबसूरत मोड़
मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
ये दुनिया दो-रंगी है
ज़िंदगी-भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया