कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया
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गुरेज़
न मुँह छुपा के जिए हम न सर झुका के जिए
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ
तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
बहुत घुटन है
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
शहज़ादे