जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊर आ जाता है
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बरबाद-ए-मोहब्बत की दुआ साथ लिए जा
कभी कभी
लब पे पाबंदी तो है
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
दूर रह कर न करो बात क़रीब आ जाओ
हम-अस्र
विर्सा
एक वाक़िआ
ये दुनिया दो-रंगी है
अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके
कोई दिल की चाहत से मजबूर है