इस रेंगती हयात का कब तक उठाएँ बार
बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(752) Peoples Rate This
हवस-नसीब नज़र को कहीं क़रार नहीं
ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है
ख़ुद-कुशी से पहले
नाकामी
तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए
हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
एक शाम
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को मैं अहद क्या समझूँ
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
इस तरह ज़िंदगी ने दिया है हमारा साथ