हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
यारो कोई तो उन की ख़बर पूछते चलो
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तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
अहल-ए-दिल और भी हैं
आना है तो आ राह में कुछ फेर नहीं है
ग़ैरों पे करम अपनों पे सितम
मैं जागूँ सारी रैन सजन तुम सो जाओ
हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
चेहरे पे ख़ुशी छा जाती है आँखों में सुरूर आ जाता है
यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना
शर्मा के यूँ न देख अदा के मक़ाम से
अक़ाएद वहम हैं मज़हब ख़याल-ए-ख़ाम है साक़ी
सर-ज़मीन-ए-यास
इंसाफ़ का तराज़ू जो हाथ में उठाए