हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Allama Iqbal
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(805) Peoples Rate This
बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
जब कभी उन की तवज्जोह में कमी पाई गई
उमीद
इतनी हसीन इतनी जवाँ रात क्या करें
भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
मतलब निकल गया है तो पहचानते नहीं
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
यूँही दिल ने चाहा था रोना-रुलाना
पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है